शिवसेना शिरोमणी बाल ठाकरे को आखिर सदबुद्धि आ ही गयी और उन्होंने मांग की है कि हिन्दुओं को भी आत्मघाती दस्ता बना ही लेना चाहिए। हां यह तो सही है टिट फार टैट या विषह विषस्य औषधम। जैसे को तैसा मिलना ही चाहिए अब अगर आपको बैल सींग मारे तो आपको भी सींग लगवा लेना चाहिए। पर एक शंका होती है कि क्या ठाकरे हिन्दू नहीं हैं या फिर वह हिन्दुओं के आदर्श होने से डरते हैं। नहीं तो क्या कारण है कि वे आगे आकर उनका पथ प्रदर्शन नहीं करते। वे आत्मघात कर राह दिखाएं सारे हिन्दू उनकी राह पर चल पडेंगे। हिन्दू तो भेंड हैं जिस राह उनका नेता चलेगा उस राह चल देंगे उनके अपने विचार तो होते नहीं। वे तो मूक भक्त जीव हैं।
क्या तमाशा है कि तमाम भाजपा नेता अपने इस सहयोगी दल के नेता के इस बयान की निंदा कर रहे हैं। वे तो ठाकरे की मूल भावना को समझ ही नहीं रहे। दरअसल ठाकरे इस तरह हिन्दुओं के बीच से तमाम अतिवादी तत्वों का सफाया चाहते हैं। कि उनके बयान पर तमाम अतिवादी हिन्दू आगे आकर अपनी जान दे देंगे और आगे उनकी राह हमेशा की तरह निष्कंटक रहेगी। ना चरमपंथी रहेंगे ना वे इस चरमपंथी को चुनौती देंगे। आखिर हिन्दुओं की सुशील छवि का भी तो सवाल है। इस तरह सारे अतिपंथी हिन्दू सामने आकर शहीद हो जाएंगे तो बचे हुए हिन्दू खुद सुशील कहलाएंगे। राम राम सत्य है...
Wednesday, June 18, 2008
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1 comment:
अच्छा व्यंग है. बाल ठाकरे जैसे लोग हिंदू धर्म को केवल ग़लत रूप में ही प्रोजेक्ट कर सकते हैं. यदि हम आतंकवाद की निंदा करते हैं तब हिंदू धर्म में आतंकवाद की बकालत कैसे कर सकते हैं? और यदि हम हिंदू धर्म में आतंकवाद की बकालत करते हैं तब हम या तो हिंदू धर्म में विश्वास नहीं करते या आतंकवाद की निंदा करना मात्र एक ढकोसला है. हिंदू धर्म और आतंकवाद एक नदी के दो किनारे हैं जो कभी मिल नहीं सकते. अगर कभी मिले तो नदी नदी नहीं रहेगी.
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