Wednesday, June 18, 2008

क्‍या बाल ठाकरे हिन्‍दू नहीं - व्‍यंग्‍य

शिवसेना शिरोमणी बाल ठाकरे को आखिर सदबुद्धि आ ही गयी और उन्‍होंने मांग की है कि हिन्‍दुओं को भी आत्‍मघाती दस्‍ता बना ही लेना चाहिए। हां यह तो सही है टिट फार टैट या विषह विषस्‍य औषधम। जैसे को तैसा मिलना ही चाहिए अब अगर आपको बैल सींग मारे तो आपको भी सींग लगवा लेना चाहिए। पर एक शंका होती है कि क्‍या ठाकरे हिन्‍दू नहीं हैं या फिर वह हिन्‍दुओं के आदर्श होने से डरते हैं। नहीं तो क्‍या कारण है कि वे आगे आकर उनका पथ प्रदर्शन नहीं करते। वे आत्‍मघात कर राह दिखाएं सारे हिन्‍दू उनकी राह पर चल पडेंगे। हिन्‍दू तो भेंड हैं जिस राह उनका नेता चलेगा उस राह चल देंगे उनके अपने विचार तो होते नहीं। वे तो मूक भक्‍त जीव हैं।
क्‍या तमाशा है कि तमाम भाजपा नेता अपने इस सहयोगी दल के नेता के इस बयान की निंदा कर रहे हैं। वे तो ठाकरे की मूल भावना को समझ ही नहीं रहे। दरअसल ठाकरे इस तरह हिन्‍दुओं के बीच से तमाम अतिवादी तत्‍वों का सफाया चाहते हैं। कि उनके बयान पर तमाम अतिवादी हिन्‍दू आगे आकर अपनी जान दे देंगे और आगे उनकी राह हमेशा की तरह निष्‍कंटक रहेगी। ना चरमपंथी रहेंगे ना वे इस चरमपंथी को चुनौती देंगे। आखिर हिन्‍दुओं की सुशील छवि का भी तो सवाल है। इस तरह सारे अतिपंथी हिन्‍दू सामने आकर शहीद हो जाएंगे तो बचे हुए हिन्‍दू खुद सुशील कहलाएंगे। राम राम सत्‍य है...

Sunday, June 15, 2008

रोटियों के ख्‍वाब से चल रहा है काम ... शैलेन्‍द्र

अरसा पहले धर्मयुग या साप्‍ताहिक हिन्‍दुस्‍तान में शैलेन्‍द्र का यह गीत उनकी हस्‍तलिपी में छपा था उनकी तस्‍वीर के साथ, उसकी कटिंग मेरी फाईल में अब भी है चलिए पढें आप भी उसे और उसमें निहित आशावादी विचार को आत्‍मसात करें...

बेटी-बेटे

आज कल में ढल गया
दिन हुआ तमाम
तू भी सोजा सोगई
रंग भरी शाम

सांस सांस का हिसाब ले रही है जिन्‍दगी
और बस दिलासे ही दे रही है जिन्‍दगी
रोटियों के ख्‍वाब से चल रहा है काम
तू भी सोजा ....

रोटियों सा गोल गोल चांद मुस्‍कुरा रहा
दूर अपने देश से मुझे तुझे बुला रहा
नींद कह रही है चल, मेरी बाहें थाम
तू भी सोजा...

गर कठिन कठिन है रात ये भी ढल ही जाएगी
आस का संदेशा लेके फिर सुबह तो आएगी
हाथ पैर ढूंढ लेंगे , फिर से कोई काम
तू भी सोजा...

Thursday, June 12, 2008

प्रेम और चारित्रिक दृढता - एरिक फ्रॉम

समजैविक प्रेम के उलट परिपक्‍व प्रेम में व्‍यक्ति की चारित्रिक दृढता और वैयक्तिकता बरकरार रहती है। प्रेम व्‍यक्ति के भीतर एक सक्रिय शक्ति का नाम है। यह वह शक्ति है जो व्‍यक्ति और दुनिया के बीच की दीवारों को तोड़ डालती है, उसे दूसरों से जोड़ देती है। प्रेम उसके अकेलेपन और विलगाव की भावना को दूर कर देता है। पर इसके बावजूद उसकी वैयक्तिकता बची रहती है। प्रेम एक ऐसी क्रिया है जिसमें दो व्‍यक्ति एक होकर भी दो बने रहते हैं।

गंगा और महादेव - राही मासूम रजा

मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझको कत्‍ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
मेरे उस कमरे को लूटो जिसमें मेरी बयाने जाग रही हैं
और मैं जिसमें तुलसी की रामायण से सरगोशी करके
कालीदास के मेघदूत से यह कहता हूं
मेरा भी एक संदेश है।
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझको कत्‍ल करो और मेरे घर में आग लगा दो
लेकिन मेरी रग-रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है
मेरे लहू से चुल्‍लू भर महादेव के मुंह पर फेंको
और उस योगी से कह दो-महादेव
अब इस गंगा को वापस ले लो
यह जलील तुर्कों के बदन में गढा गया
लहू बनकर दौड़ रही है।

नोम चॉमस्‍की - मीडिया के आधार

अमेरिकी विचारक नोम चॉमस्‍की का मानना है कि मीडिया एक ऐसा बाजार तंत्र है जिसकी दिशा लाभ तय करता है। मालिक मीडिया की विषय वस्‍तु तय करता है। और यह प्रोपेगंडा किया जाता है कि इस विषय पर जनता के बीच सहमति है। मीडिया को समझने के लिए नोम पांच आधार तय करते हैं। एक है पैसा। पैसे के मालिक का एक ही मकसद होता है लाभ कमाना। दूसरा आधार है विज्ञापन। यह सहमति बनाने और विचार को नियंत्रित करने में अपनी भूमिका निभाता है। तीसरा आधार है जानकारी। यह सरकार, व्‍यवसाय और विशेषज्ञ के गठजोड़ से आती है। मीडिया का चौथा आधार है आलोचना। मीडिया के आलोचक भी सरकार, व्‍यवसाय और यथास्थिति के पक्षधर होते हैं। पांचवां आधार साम्‍यवाद विरोध। आजकल साम्‍यवाद का विरोध पैसा कमाने का दूसरा मूल्‍य है।मीडिया पर तीन सवाल खड़ा करते हुए नोम पूछते हैं कि वह कौन सा इतिहास है जो इतना भद्दा है कि उसे कथाओं में छुपाना पड़ता है। वो कैसी नीतियां हैं जिन्‍हें हम जानें तो समर्थन नहीं करते। वे कैसी नीतियां है जिन्‍हें सरकार छिपाती है।